
सामुदायिक संसाधन व्यक्ति : सरिता क्लस्टर समन्वयक : जयनेंद्र वॉटरशेड विशेषज्ञ : अमित
ग्राम: खेडियाटांगर, पंचायत: टांगर पोखरिया, लाभुक: विरसिंह पुरती
पश्चिम सिंहभूम के टांगर पोखरिया पंचायत के खेडियाटांगर गाँव में जल संरक्षण की दिशा में एक सराहनीय कदम उठाया गया है। यहाँ की भूमि पहाड़ी और पथरीली है, जिसके कारण जलधारण क्षमता कमजोर है। कृषि यहाँ की प्रमुख आजीविका है, लेकिन सिंचाई के साधनों की कमी ने किसानों के लिए चुनौतियाँ खड़ी की हैं। BRLF (भारत ग्रामीण आजीविका फाउंडेशन) के हाई इम्पैक्ट मेगा वॉटरशेड प्रोग्राम के तहत इस क्षेत्र में जल संरक्षण संरचनाओं का निर्माण किया गया, जिससे किसानों को स्थायी कृषि का मार्ग मिला।
परिवार और भूमि की स्थिति : विरसिंह पुरती का परिवार तीन सदस्यों का है और उनके पास 2 से 3 एकड़ भूमि है। वे मुख्य रूप से धान की खेती करते हैं, लेकिन सिंचाई की सीमित उपलब्धता के कारण सब्जी की खेती केवल मौसमी रूप से करते थे। उनकी भूमि के लिए एक 30x40 वाटर रिचार्ज संरचना बनाई गई, जो मई 2023 में पूरी हुई। यह संरचना पिछले एक वर्ष से सफलतापूर्वक कार्यरत है।
वाटरशेड हस्तक्षेप : इस परियोजना के तहत 30x40 वाटर रिचार्ज स्ट्रक्चर का निर्माण किया गया। Trench cum Bund का निर्माण किया गया। संरचना से आसपास के खेतों और कुओं के जल स्तर में सुधार देखा गया। विशेष रूप से धान और मौसमी सब्जियों के उत्पादन में बढ़ोतरी हुई। बेहतर सिंचाई ने परिवार को बहु-फसली खेती का अवसर दिया। बेहतर उत्पादन ने परिवार की आय में वृद्धि की। स्थानीय स्तर पर आजीविका के साधन उपलब्ध होने से परिवार ने अन्य शहरों में पलायन करना बंद कर दिया। लाभुकों को घाटशिला के TRTC केंद्र में प्रशिक्षण दिया गया, जहाँ उन्होंने कृषि प्रबंधन, फसल चक्र, और जल संरक्षण तकनीकों के बारे में सीखा।
30x40 वाटर रिचार्ज संरचना जल संरक्षण और भूजल पुनर्भरण के लिए एक अत्यंत प्रभावी प्रणाली है। यह संरचना विशेष रूप से उन क्षेत्रों में उपयोगी है, जहाँ पानी की उपलब्धता सीमित है और खेती मानसून पर निर्भर है। पश्चिमी सिंहभूम जिले के खेडियाटांगर गाँव में BRLF हाई इम्पैक्ट मेगा वॉटरशेड प्रोग्राम के तहत इस संरचना का निर्माण किया गया है, जो स्थानीय कृषि और आजीविका में सुधार के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।
रचना का आकार 30 फीट x 40 फीट है। इसकी गहराई 3-4 फीट है, जो क्षेत्र की भू-जल स्तर और भूमि की प्रकृति के अनुसार समायोजित है। संरचना के चारों ओर मिट्टी और पत्थरों से मजबूत तटबंध बनाए जाते हैं, ताकि पानी रिसकर बाहर न जाए। जल रिसाव को रोकने के लिए, संरचना के तल में प्राकृतिक सामग्रियों (जैसे कंकड़, मिट्टी और जैविक सामग्री) का उपयोग किया जाता है।
संरचना में बारिश का पानी जमा होता है, जो धीरे-धीरे भूजल में पुनर्भरण करता है। आसपास के खेतों और जल स्रोतों (जैसे कुएँ) के जल स्तर में सुधार करने के लिए यह संरचना अत्यधिक प्रभावी है। संरचना के कारण आसपास के खेतों को सालभर सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध हो रहा है।
ट्रेंच-कम-बंड संरचना (TCB), जल और मिट्टी संरक्षण के लिए एक बहुउद्देशीय तकनीक है, जिसे खासतौर से पहाड़ी और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में उपयोग किया जाता है। यह संरचना पानी को नियंत्रित तरीके से रोकने और मिट्टी के कटाव को कम करने में मदद करती है। BRLF हाई इम्पैक्ट मेगा वॉटरशेड प्रोग्राम के तहत, पश्चिमी सिंहभूम जिले और तांतनगर ब्लॉक के ग्रामीण क्षेत्रों में इस तकनीक का सफलतापूर्वक उपयोग किया गया है।
ट्रेंच (खाई) आमतौर पर 3-5 फीट चौड़ी, 1-2 फीट गहरी और 15-20 फीट लंबी होती है। बंड (मेड़) ट्रेंच के किनारे बनाए जाते हैं, जो पानी को रोकने और संग्रहित करने में मदद करते हैं। संरचना को ढलान वाले क्षेत्रों में बनाया जाता है ताकि पानी की गति को नियंत्रित किया जा सके। इसे खेतों के किनारे या अनुपयोगी भूमि में स्थापित किया जाता है। ट्रेंच के निर्माण में स्थानीय मिट्टी और पत्थरों का उपयोग किया जाता है। बंड बनाने के लिए निकाली गई मिट्टी का उपयोग किया जाता है, जिससे लागत कम होती है।
TCB पानी को खेतों में बहने और मिट्टी के कटाव को रोकने के लिए डिज़ाइन किया गया। ट्रेंच पानी को रोककर धीरे-धीरे मिट्टी में रिसने देता है, जिससे भूजल पुनर्भरण होता है। ट्रेंच बारिश के पानी को संग्रहित करती है, जिससे पानी बहकर नष्ट नहीं होता। संरचना भूजल स्तर को पुनर्भरण में मदद करती है। ढलान वाले क्षेत्रों में मिट्टी का कटाव रोककर खेती योग्य भूमि को संरक्षित करती है। पानी की गति को धीमा करके मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने में मदद करती है।
खेडियाटांगर गाँव में पहले केवल धान की खेती की जाती थी, लेकिन अब सब्जियों (जैसे मूली, टमाटर, साग) और अन्य फसलों की खेती भी संभव हो रही है। बहु-फसली खेती किसानों की आय बढ़ाने में मददगार है। बेहतर सिंचाई ने किसानों को उच्च गुणवत्ता की फसलें उगाने में मदद की है, जिससे उनकी आय में वृद्धि हुई है। सब्जियों और अतिरिक्त फसलों की बिक्री से वार्षिक आय में सुधार हुआ है।
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