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उच्च प्रभाव वाले मेगा वाटरशेड कार्यक्रम की अवधारणा

लेखक की तस्वीर: Development ConnectsDevelopment Connects

 

झारखंड के पश्चिम सिंहभूम जिले की असमतल भूमि और अनियमित वर्षा एवं मौसमी जल संकट ने लंबे समय तक यहां की कृषि उत्पादकता को प्रभावित किया है। इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए जीवी-दाह-हासा कार्यक्रम उच्च प्रभाव वाले मेगा वाटरशेड विकास पद्धति को लागू कर रहा है। यह पहल जल विज्ञान अभियांत्रिकी (Hydrological Engineering), मृदा एवं जल संरक्षण (Soil and Water Conservation) और सामुदायिक प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन (Participatory Natural Resource Management) के सिद्धांतों पर आधारित है, जिसका उद्देश्य ग्रामीण समुदायों को सतत जल प्रबंधन और कृषि आजीविका में सक्षम बनाना है। यह कार्यक्रम भौगोलिक ढलानों, वर्षा पैटर्न और मौजूदा जल संरचना का व्यवस्थित रूप से विश्लेषण करके यह सुनिश्चित करता है कि जलग्रहण योजना (Watershed Planning) वैज्ञानिक रूप से सुदृढ़ और सामाजिक रूप से समावेशी हो।


टांटनगर ब्लॉक, जो एक पठारी क्षेत्र में स्थित है और जहां मौसमी जल धाराएँ और निचले समतल क्षेत्र फैले हुए हैं, को हर वर्ष औसतन 1,400 मिमी वर्षा प्राप्त होती है। हालांकि, इस भारी वर्षा के बावजूद, केवल 18 से 22 प्रतिशत वर्षा जल ही उपयोगी तरीके से संरक्षित हो पाता है, जबकि शेष जल तेज अपवाह (Surface Runoff) के कारण बहकर व्यर्थ चला जाता है। यहां की मध्यम पारगम्यता वाली लेटराइट मिट्टी (Lateritic Soil) और कठोर चट्टानी आधार इस समस्या को और गंभीर बना देते हैं, जिससे तेजी से जल निकासी (Rapid Water Drainage) और भूजल स्तर की गिरावट (Groundwater Depletion) होती है।


इस समस्या का समाधान करने के लिए जीवी-दाह-हासा कार्यक्रम एक तीन-स्तरीय जलग्रहण अभियांत्रिकी मॉडल (Three-Tiered Watershed Engineering Model) पर कार्य कर रहा है, जो जल संरक्षण को बढ़ाने, मिट्टी की नमी बनाए रखने और वर्षभर जल सुरक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से लागू किया गया है।


पहले स्तर पर, रिज-लाइन ट्रीटमेंट (Ridge-Line Treatment) तकनीकों का उपयोग किया जाता है, जिससे अपवाह की गति कम हो और मिट्टी के कटाव को रोका जा सके। इस कार्यक्रम के तहत कॉन्टूर ट्रेंचिंग (Contour Trenching), स्टैगर्ड ट्रेंच (Staggered Trenches) और गली प्लग (Gully Plugs) का उपयोग किया जाता है, जिससे ढलानों पर पानी का प्रवाह नियंत्रित किया जाता है। टांटनगर में जहां ढलान 3 से 15 डिग्री के बीच भिन्न होता है, इन संरचनाओं ने मिट्टी का कटाव 40 प्रतिशत तक कम कर दिया है, जिससे उपजाऊ टॉपसॉयल सुरक्षित रहती है।


दूसरे स्तर पर, मध्य ढलान क्षेत्रों (Mid-Slope Regions) में ध्यान भूजल पुनर्भरण (Groundwater Recharge) और जल संचयन पर केंद्रित किया जाता है। हाइड्रोजियोलॉजिकल अध्ययन (Hydrogeological Studies) से पता चला है कि इस क्षेत्र में फ्रैक्चर्ड रॉक एक्वीफर (Fractured Rock Aquifer) पाए जाते हैं, जो जल संग्रहण क्षमता को सीमित करते हैं। इसे ध्यान में रखते हुए जीवी-दाह-हासा कार्यक्रम के तहत परकोलेशन टैंक (Percolation Tanks) और छोटे बांध (Small Dams) बनाए गए हैं।


डिजिटल एलिवेशन मॉडल (DEM) और GIS आधारित जल विज्ञान मानचित्रण के उपयोग से प्राकृतिक जल संचयन क्षेत्रों की पहचान की गई है, जिससे यह अनुमान लगाया गया कि इन संरचनाओं से भूजल स्तर दो वर्षों के भीतर 1.2 से 1.7 मीटर तक बढ़ सकता है।


तीसरे स्तर पर, निचले समतल क्षेत्रों और कृषि भूमि (Cultivated Lowlands and Valleys) में जल संचयन संरचनाओं (Surface Water Harvesting Structures) का निर्माण किया गया है। कार्यक्रम के तहत 800 से 1,200 घन मीटर क्षमता वाले फार्म तालाब (Farm Ponds) बनाए गए हैं, जो रणनीतिक रूप से वर्षा जल को संग्रहित करने और सूखे के समय सिंचाई प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं। रनऑफ कोएफिशिएंट विश्लेषण (Runoff Coefficient Analysis) का उपयोग करके इन तालाबों का आकार तय किया जाता है, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे कम से कम 40% मौसमी वर्षा जल संग्रहित कर सकें।


डेटा बताते हैं कि इस प्रकार के जलग्रहण विकास उपायों ने फसल चक्र (Cropping Intensity) को 1.5 से 2 गुना बढ़ाने में सहायता की है, जिससे किसान अब एक ही मौसम में एक फसल उगाने के बजाय बहु-मौसमी कृषि को अपना पा रहे हैं। 


इस पहल ने टांटनगर की आदिवासी समुदायों (Tribal Communities) के लिए विशेष रूप से लाभकारी प्रभाव डाला है, जहां 40% भूमि वन क्षेत्र (Forest Ecosystem) के अंतर्गत आती है। जीवी-दाह-हासा के तहत कृषि वानिकी (Agroforestry) मॉडल को लागू किया गया है, जिसमें किसानों को लाभकारी वृक्ष प्रजातियों (High-Value Tree Species) और औषधीय पौधों की खेती के लिए प्रोत्साहित किया गया है।


जलवायु डेटा विश्लेषण (Climate Data Analytics) और रीयल-टाइम हाइड्रोलॉजिकल मॉनिटरिंग से इस कार्यक्रम को और अधिक सुदृढ़ किया जा सकता है। इस पहल का सबसे महत्वपूर्ण प्रभाव टांटनगर में ग्रामीण प्रवासन (Rural Migration) को कम करने में देखा गया है। ऐतिहासिक रिकॉर्ड बताते हैं कि टांटनगर से जमशेदपुर और राउरकेला जैसे औद्योगिक क्षेत्रों में मौसमी प्रवासन दर 40% तक थी। हालांकि, जलग्रहण आधारित आय विविधीकरण मॉडल (Watershed-Based Income Diversification Models) लागू होने के बाद, सर्वेक्षणों से पता चला है कि यह प्रवासन दर 30% तक कम हो गई है, क्योंकि अब अधिक परिवार स्थानीय कृषि और पशुधन आधारित आजीविका से अपने जीवनयापन में सक्षम हो रहे हैं।


जीवी-दाह-हासा वैज्ञानिक रूप से नियोजित, सामुदायिक-संचालित जलग्रहण विकास का एक आदर्श मॉडल है। इसकी सफलता हाइड्रोलॉजिकल विज्ञान, भागीदारी संसाधन प्रबंधन और आजीविका एकीकरण की क्षमता को दर्शाती है, जिससे जल संकटग्रस्त ग्रामीण क्षेत्रों को जलवायु अनुकूल, आत्मनिर्भर पारिस्थितिकी तंत्र में बदला जा सकता है।

 

 

 

 

 
 
 

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